भू-माफियाओं ने करमीसर में सरकारी जमीन पर बसा दी कॉलोनियां

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बीकानेर (समाचार सेवा)। भू-माफियाओं ने करमीसर में सरकारी जमीन पर बसा दी कॉलोनियां, शहर में भू-माफियाओं के हौंसले किस कदर बुलन्द रहे इसका प्रत्यक्ष प्रमाण करमीसर में देखने को मिल सकता है,

जहां करोड़ो की बेशकिमती उन्नीस बीघा जमीन पर भू-माफियाओं ने ना सिर्फ कॉलोनिया  बसा दी बल्कि इन कॉलोनियों में भूखण्ड बेच कर करोड़ों रूपये कमा लिये।

विडम्‍बना की बात तो यह रही  यूआईटी के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जमीन का अभी तक सीमाज्ञान और कब्जे की कार्रवाही भी लंबित पड़ी है।

यूआईटी अधिकारियों को जमीन का सीमाज्ञान और कब्जे की कार्यवाही के लिये लगातार अवगत कराये जाने के बावजूद उन्होने आंखे मूंदे रखी। चौंकानें वाली बात तो यह है कि इस जमीन पर कॉलोनियां बसाने में वालें भू-माफियाओं में रसूखदार नेता और उनके रिश्तेदार भी शामिल है।

पुख्ता खबर यह भी है कि करमीसर की इस बेसकिमती सरकारी जमीन पर बसाई गई कॉलोनियों के कई भूखण्डों में आलिशान मकान भी बन चुके है, कई भूखण्डधारियों ने पट्टे भी बनवा लिये है।

बताया जाता है कि भू-माफियाओं के भेंट चढी इस जमीन का मामला पिछले महिने ही जिला कलक्टर कुमारपाल गौतम के ध्यान में आया था और उन्होने जांच कार्रवाही करवाकर तत्काल सीमाज्ञान कराने के निर्देश दिये।

अब तक की जांच पड़ताल में खुलासा हुआ है कि शहर के प्रभावशाली भू-माफियाओं ने इकरारानामें के जरिये इस जमीन की आपस में खरीद फरो त कर ली फिर भूखण्ड बेच कर लोगों को रजिस्ट्रीया करवा दी।

कई भू-माफियाओं ने एक ही भूखण्ड की दो-दो बार बेच कर उनकी रजिस्ट्रियां करवा दी।

इन कॉलोनियों में भूखण्ड खरीदने वाले लोग अब इधर उधर भटकने को मजबूर है,कई भूखण्डधारियों ने पट्टे बनाने के लिये यूआईटी में फाईलें पेश की लेकिन कॉलोनी की जमीन कब्जेशुदा होने के कारण पट्टों की कार्यवाही अट की हुई है।

यूं चलता है सारा खेल

जानकारी के अनुसार कृषि भूमि पर प्लॉटिंग करने से पहले भू-माफिया सस्ते भावों में खातेदार से एक साथ प्रति बीघा के हिसाब से कृषि भूमि खरीद लेते हैं।

बाद में वहां प्लॉटिंग कर कॉलोनी का नामकरण कर दिया जाता है। जब प्लॉट खरीदने लोग पहुंचते है तो उनको कॉलोनी यूआईटी अप्रुव्ड बताकर महंगे भावों में प्लॉट बेच देते हैं।

इतना ही नहीं लोगों को गुमराह करके केवल स्टा प पर इकरारनामा या भूखंड की रजिस्ट्री कृषि भूखंड के रूप में करवाकर दे दी जाती है जबकि राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम के तहत बेची गई जमीन का इंतकाल दूसरे व्यक्ति के नाम दर्ज नहीं होने तक वह भूमि पुराने खातेदार की ही होती है।

ऐसे बहुत से भूखंडधारी हैं, जो आज भी अपने भूखंड का मालिकाना हक पाने के लिए कोर्ट में चक्कर काटते फिर रहे हैं।

उन्होंने पैसे देकर भूखंड तो खरीद लिया, मगर उसका इंतकाल नहीं चढ़ा होने के कारण उनको भूखंड का मालिक नहीं माना जा रहा है।

यह है मामला

जानकारी के अनुसार ग्राम करमीसर में खसरा नंबर 61/1, 66/1,67/1, 71, 75, 77 की करीब 19 बीघा भूमि राजस्व रिकार्ड में अराजीराज थी।

इसमें से कुछ जमीन पर कालोनाइजरों ने कॉलोनियां काट डाली। लोगों ने मकान बना लिए। यूआईटी को पिछले साल भनक लगी तो जमीन का नामातंकरण कराया। लेकिन सीमाज्ञान अब तक नहीं हो पाया है।  

हैरत की बात यह है कि सीमाज्ञान के लिए तहसीलदार ने पिछले साल मई में ही टीम गठित की थी, लेकिन वह आदेश फाइलों में दब कर रह गया।