समझ से परे है एसडीएम-एसएचओ विवाद का समझौता

sho sdm khajuwala
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उषा जोशी

बीकानेर, (samacharseva.in)। खाजूवाला क्षेत्र के एसडीएम तथा थानाधिकारी के बीच हॉट टॉक का विवाद समझौते के बाद खत्‍म समझा जा रहा है मगर विभागीय कार्रवाई से पहले केवल पंचायती से किया गया इस विवाद का समझौता अब भी कई लोगों की समझ से परे है। अब तक यह समझौता एकतरफा भी लग रहा है। एसडीएम ने माफी मांग ली।

समझौते पर हस्‍ताक्षर भी कर दिये मगर सुना है ऐसे किसी समझौते पर एसएचओ खाजूवाला के हस्‍ताक्षर ही नहीं है। ऐसा कोई लिखित समझौता सार्वजनिक भी नहीं किया गया है।

कोरोना संक्रमण काल में खाजूवाला से घडसाना की ओर जाने वाले लोगों को रोकने के लिये खाजूवाला एसडीएम संदीप काकड़ ने फोन पर एसएचओ खाजूवाला को निर्देशों के साथ कुछ अपशब्‍द भी बोल दिये थे। जो विवाद का विषय बने।

इसी माह 16 अप्रैल की रात को हुए इस विवाद के बाद एसएचओ खाजूवाला ने बीकानेर के जिला पुलिस अधीक्षक प्रदीप मोहन शर्मा को फोन रिकार्डिंग के साथ अपनी व्‍यथा सुनाई। जिला पुलिस अधीक्षक ने 17 अप्रैल को जिला कलक्‍टर कुमार पाल गौतम को अशासकीय पत्र देकर मामले की जानकारी दी। जिला कलक्‍टर ने 21 अप्रैल को एसडीएम खाजूवाला को नोटिस देकर सात दिन में जवाब पेश करने को कहा। इस बीच मीडिया से बातचीत में 26 अप्रैल तक एसडीएम खाजूवाला अपनी गलती मानने को तैयार नहीं दिख रहे थे।

अचानक पिछले दो-तीन दिनों में समझौते की कहानी तैयार हो गई। एएसपी सुनील कुमार जांच करने भी पहुंच गए। बाद में एसडीएम साहब माफी मांगते हुए और समझौते की जानकारी देते हुए वीडियो में दिख गए। वहीं बीकानेर कलक्‍टर ने 21 अप्रैल को जो नोटिस एसडीएम संदीप काकड को दिया और सात दिन में जवाब मांगा उसमे साफ कहा गया कि एसडीएम का आचरण अत्‍यंत ही असंयमित था और उन्‍होंने अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया। साथ ही नोटिस में एसडीएम के व्‍यवहार को बहुत ही खेदजनक बताया गया।

एसडीएम के आचरण को लोक सेवक को कर्तव्‍यों के निर्वहन में बाधा डालने एवं लोक सेवक का क्षति कारित करने की धमकी देने की परिधि में आना बताया गया। साथ ही यह भी बताया गया कि एसडीएम का आचरण भारतीय दंड संहिता की धारा 186, 189 के तहत दंडनीय है। उनका व्‍यवहार आचरण नियमों का उल्‍लघंन एवं अनुशासनहीनता की श्रेणी में भी बताया गया। और नोटिस में एसडीएम से यह पूछा गया कि क्‍यों ना आपके खिलाफ अनुशासनात्‍मक कार्यवाही अमल में लाई जाये। सात दिन में जवाब भी मांगा गया।

अब समझौते से सब कुछ निबटने का दावा किया जा रहा है जबकि जिन दो लोगों के बीच विवाद है उनका संयुक्‍त हस्‍ताक्ष्‍ारित कोई समझौता भी सार्वजकिन नहीं किया गया है। ऐसे में विभागीय कार्यवाही के बजाय किसी प्रकार की पंचायती से कराया गया यह समझौता कईयों की समझ से परे का समझौता है। देखते हैं आगे ऊंट किस करवट बैठता है।