पॉलिटिक्स में हैट्रिक का रहा शोर

PANCHNAMA - USHA JOSHI DAINIK NAVJYOTI BIKANER
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पंचनामा : उषा जोशी

पॉलिटिक्स में हैट्रिक का रहा शोर

भले ही राजनीति व किक्रेट दो अलग अलग प्रकार के खेल हों मगर जांगळ देश की राजनीति में इस बार हैट्रिक फैक्टर का बड़ा जोर रहा।

हैट्रिकथीम पर चुनाव के दौरान व चुनाव के बाद बने गानों को युवा अब भी पसंद कर रहे हैं। चलिये बता देते हैं कि क्यों इस बार हैट्रिक का चर्चा रहा।

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बीकानेर पश्चिम में दो उम्मीदवारों की हैट्रिक लगने की बड़ी चर्चा पूरे चुनाव में रही। तगड़ी बात यह थी कि एक उम्मीदवार हैट्रिक लगाना चाह रहा था जबकि दूसरा नहीं।

कहा जा रहा था कि बीकानेर पश्चिम से कमल खिलता है तो दोनों उम्मीदवारों की हैट्रिक तय है, एक की जीत की तथा दूसरे की हार की।

परिणाम आये तो सब उलटा हो गया। हाथ वाले उम्मीदवार जीते तो ना तो कमल वालों की जीत की हैट्रिक बना लेने का सपना चकनाचूर हो गया।

हाथ वाले साहब तो चाहते ही नहीं थे कि किक्रेट के इस सबसे लोकप्रिय शब्द से इस बार उनका पाला पड़े। ऐसा ही हुआ। जनता ने हाथ वाले साहब का साथ दिया। आप अब भी यूट्यूब पर बीकानेर हैट्रिक सांग सर्च करके दोनों उम्मीदवारों के गीतों का आनंद ले सकते हैं।

एमएलए साहिबा ने माना विकास कम हुआ

जांगळ देश की पश्चिम सीट पर तो जीत की हैट्रिक नहीं बन पाई मगर इसके पूर्व के इलाके में कमल वाली पूर्व राजघराने की सदस्य विधायिका ने जरूर अपनी जीत की हैट्रिक बना ली।

एमएलए साहिबा का जीत का अंतर इस बार जरूर कम हुआ है। उनसे लोगों की हमेशा शिकायत रहती हैं कि वे जीतने के बाद ना तो क्षेत्र में दिखाई देती हैं

और ना ही रणक्षेत्र यानि विधानसभा में, जीतने के बाद भी जब कलमकारों ने यही सवाल दागा तो एमएलए साहिबा बोल पड़ी वोट का अंतर कम होने का कारण

मेरा क्षेत्र में या रणक्षेत्र में कम उपस्थित होने का नहीं बल्कि क्षेत्र में विकास कम होने के कारण आया है।

अब कमल सरकार की पुरानी मुखिया अपनी एक एमएलए की ये बात सुनेगी तो उन्हे क्या अच्छा लगेगा, चलो जो बीत गया सो बीत गया,

एमएलए साहिबा से उम्मीद है कि वे इस बार कुछ अधिक विकास करवाकर चौथी बार विधायक बनने पर जीत का अंतर अधिक कर सकेंगी। आमीन।

डॉक्टर साहब नहीं कर पाये इलाज

जांगळ देश की दस वर्ष पूर्व बनी नई विधानसभा सीट खाजूवाला पर दो बार एमएलए रह चुके यहां के डॉक्टर साहब भी इस बार अपनी जीत की हैट्रिक नहीं बना सके।

हालांकि डॉक्टर साहब ने जनता की नब्ज समझने का पूरा प्रयास किया मगर वे जहां भी वोट केंप लगाते लोग इलाज करने की बजाय उनका इलाज करने की बात कहने लग जाते।

क्षेत्र में कम आने व लोगों की खेर खबर नहीं लेने का चुनाव प्रचार के दौरान जो आरोप लग रहा था वो वोटो की गिनती के बाद सच के रूप में सामने आ गया।

डॉक्टर साहब को कई सभाओं व निजी बैठकों में लोगों के उलाहने सुनने को मिले, कईयों ने उसे वायरल कर दिया मगर अनेक सयानों ने मतदान के दिन ही अपना निर्णय सुनाने की तय कर रखी थी।

कमल की सरकार में भागीदार डॉक्टर साहब के सामने हाथ वाले उम्मीदवार भी यदि इस बार नहीं जीतते तो उनकी हारने की जरूर हैट्रिक हो जाती, मगर उनके क्षेत्र में किए गए संघर्ष को लोगों ने याद रखा और विधानसभा भेज दिया।

सब कुछ लागे नया नया

प्रदेश में नई सरकार आने के एलान के साथ ही नई सरकार से नजदीकी रखने वाले सरकारी कारिंदो ने अच्छा पद पाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।

जो लोग पुरानी सरकार के खास माने जाते थे वे बोरिया बिस्तर बांधे बैठे आगामी आदेशों का इंतजार कर रहे हैं।

तीसरे वो लोग भी है जो किसी भी सरकार के दौरान अच्छे पदों पर ही रहते हैं। अब आपसे क्या छिपा है ऐसे लोगों को क्या कहा जाता है,

खैर आना व जाना तय है इस लिये जांगळ देश में भी राजनीति के नये समीकरणों के बाद सब कुछ नया नया लगने लगा है।